Tariff : अमेरिका पर 880 अरब डॉलर का पड़ेगा ट्रंप टैरिफ!
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डोनाल्ड ट्रंप ने रेसिप्रोकल टैरिफ (Reciprocal Tariff) के तहत तमाम व्यापारिक साझेदारों पर एक्स्ट्रा टैक्स लाद दिया है। लेकिन कहीं इसका खामियाजा अमेरिकी जनता को न भुगतना पड़ जाए?
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने हाल ही में कुछ ऐसे टैरिफ (Tariff) लगाने की घोषणा की है, जिनका असर सिर्फ विदेशी कंपनियों पर नहीं, बल्कि खुद अमेरिका की जनता और कारोबारियों पर भी पड़ सकता है। ये टैरिफ इतने बड़े स्तर पर लगाए गए हैं कि अगर लोग पहले की तरह ही विदेशी सामान खरीदते रहे, तो अमेरिकी लोगों को हर साल करीब 880 अरब डॉलर का बोझ उठाना पड़ सकता है। ये रकम अमेरिका की कुल अर्थव्यवस्था (GDP) का लगभग 2.9% है, जो 1942 के बाद अब तक की सबसे बड़ी टैक्स वृद्धि हो सकती है।
क्या राष्ट्रपति को टैक्स बढ़ाने का अधिकार है?
संविधान के अनुसार अमेरिका में टैक्स तय करने का अधिकार सिर्फ संसद (कांग्रेस) को है, राष्ट्रपति को नहीं। लेकिन पिछले कई दशकों में संसद ने कुछ मामलों में राष्ट्रपति को भी ये अधिकार दिए हैं, खासकर जब कोई 'राष्ट्रीय आपातकाल' हो। ट्रंप इन्हीं आपातकालीन अधिकारों का इस्तेमाल करके टैरिफ (Tariff) लगा रहे हैं। लेकिन सवाल उठता है, क्या वाकई कोई आपातकाल है?
ट्रंप का तर्क है कि अमेरिका का व्यापार घाटा एक बड़ी समस्या है, लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं कि हर देश के व्यापार घाटे या लाभ का कारण सिर्फ टैरिफ (Tariff) नहीं होता। उदाहरण के लिए यूरोप के 27 देश एक ही टैरिफ नीति का पालन करते हैं, लेकिन उनमें से कुछ का व्यापार घाटा है और कुछ का लाभ।
यह भी याद रखना चाहिए कि अमेरिका को व्यापार में घाटा तो 1975 से हो रहा है, लेकिन फिर भी आज अमेरिका की अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे मजबूत है। 1975 में एक अमेरिकी की औसत सालाना आमदनी लगभग $7,800 थी, जो 2023 में बढ़कर $82,000 से ज्यादा हो चुकी है। यानी घाटे के बावजूद अमेरिका समृद्ध हुआ है।
ट्रंप ने टैरिफ दरें कैसे तय कीं?
यहां सबसे हैरानी की बात यह है कि ट्रंप ने अलग-अलग देशों पर जो टैरिफ दरें लगाई हैं, वो सही आंकड़ों पर आधारित नहीं हैं। जैसे ट्रंप ने कहा कि इज़राइल 33% टैक्स लगाता है, जबकि हकीकत में वहां अब अमेरिकी सामान पर कोई टैक्स नहीं लगता। यूरोप पर उन्होंने 39% का टैक्स बताया, जबकि असल में औसतन सिर्फ 2.7% है।
ट्रंप के सलाहकारों ने हर देश के साथ अमेरिका का व्यापार घाटा लिया और उसे उस देश के अमेरिकी आयात से भाग कर दिया, और उसे ही 'टैरिफ' (Tariff) बता दिया, जबकि ऐसा करना बिलकुल गलत तरीका है।
क्या ये टैरिफ (Tariff) कोर्ट में टिक पाएंगे?
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप का यह तरीका कोर्ट में नहीं टिक पाएगा, क्योंकि किसी असली 'आपातकाल' का सबूत नहीं है। जिस तरह से टैरिफ (Tariff) तय किए गए हैं, वह बेहद कमजोर आधार पर हैं। अमेरिका की कुछ कानूनी संस्थाएं अब कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी कर रही हैं।
नतीजा क्या हो सकता है?
अगर ये टैरिफ (Tariff) जारी रहते हैं, तो अमेरिका के लोगों को महंगे दाम पर सामान खरीदना पड़ेगा। कंपनियों को भी नुकसान होगा, जिससे नौकरियां जा सकती हैं। साथ ही बाकी देश भी अमेरिका पर जवाबी टैरिफ लगा सकते हैं, जिससे व्यापार और खराब हो सकता है।
इसलिए कई जानकार मानते हैं कि सिर्फ राष्ट्रपति के कहने पर इतने बड़े आर्थिक फैसले नहीं होने चाहिए। टैक्स हो या टैरिफ (Tariff), फैसला जनता के चुने हुए सांसदों को ही करना चाहिए।
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